इन दिनों मैदानी इलाकों से लेकर पहाड़ी इलाकों तक धान की रोपाई शुरू हो जाती है और पहाड़ों में धान की दो प्रजातियां सबसे ज्यादा उगाई जाती हैं. पहला है उपरौ और दूसरा है तलौ धान, लेकिन एक धान ऐसा भी है जो अब पहाड़ों में कम जगहों पर उगाया जाता है. इसका नाम है रेड पैडी. वैसे तो सफेद धान तो सभी ने देखा होगा, लेकिन लाल धान ही लोगों ने देखा और सुना है। लाल धान को देखकर हर कोई आकर्षित हो जाता है। लाल धान में कई पौष्टिक गुण भी होते हैं।
इतना ही नहीं लाल धान 50 रुपये प्रति किलो से लेकर 500 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहर से आने वाले पर्यटक भी इस धान का स्वाद चखते हैं. वर्तमान में यह लाल धान पिथौरागढ एवं उत्तरकाशी में पाया जाता है।लाल धान के संबंध में टीम ने बताया कि पहले के समय में पहाड़ी इलाकों में बड़ी मात्रा में लाल धान की खेती होती थी. लेकिन कुछ योजनाओं के कारण अधिक उपज देने वाली किस्मों का विस्तार हुआ और किसानों ने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को अपनाया।
धीरे-धीरे लोगों ने सफेद किस्म यानी सफेद चावल को अपना लिया। इसके कारण धीरे-धीरे लाल धान का उत्पादन तो कम हुआ ही, इसका क्षेत्रफल भी कम हो गया और लाल धान कम उगाया जाने लगा।लाल धान को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है.
इसके लिए संस्थान ने धान की दो अलग-अलग प्रजातियाँ विकसित की हैं, जिनमें वीएल-69 और वीएल-159 धान की प्रजातियाँ विकसित की गई हैं और किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाता है। संचित में वीएल-69 धान की उपज क्षमता 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा उप्राव धान में वीएल-159 विकसित किया गया है, जिससे किसानों को काफी फायदा होगा।